बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 अर्थशास्त्र - आर्थिक संवृद्धि एवं विकास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 अर्थशास्त्र - आर्थिक संवृद्धि एवं विकाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 अर्थशास्त्र - आर्थिक संवृद्धि एवं विकास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- जनसंख्या एवं पर्यावरण किस प्रकार एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं तथा आर्थिक विकास को कैसे प्रभावित करते हैं? मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर-
जनसंख्या एवं पर्यावरण
वर्तमान समय में भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हो रही है। बढ़ती हुई आबादी के कारण पर्यावरण का संतुलन बिगड़ने लगा है। अधिक जनसंख्या से अधिक भोजन की मांग बढ़ती है। आवास की समस्या उत्पन्न होती है। इन बढ़ती हुई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कृषि योग्य भूमि तथा वनों की निर्मम ढंग से कटाई हो रही है। प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हो रहा है। प्रकृति का स्वरूप विकृत होता जा रहा है। हक्सले (Huxley) ने अपनी पुस्तक 'ब्रेव न्यू वर्ल्ड' (Brave New World) में लिखा है कि संसार के सामने दो सबसे खतरे हैं। एक बढ़ती जनसंख्या और दूसरा सभ्यता का यंत्रीकरण। जिस तीव्रता से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है उसमें यदि रोक न लगी तो अगले ही कुछ वर्षों में मनुष्य के निर्वाह का प्रश्न जटिल हो जाएगा। अमेरिका के पर्यावरण वैज्ञानिक डेविड टिलमैन (David Tilman) के अनुसार “यदि प्रदूषण की वर्तमान स्थितियाँ विद्यमान रहीं तो इसमें सर्वाधिक प्रभावित होने वाला क्षेत्र है कृषि। अगले 50 वर्षों में सिंचाई में काम आने वाले जल का अधिकतर इस्तेमाल पीने में किया जाएगा। कीटनाशकों का प्रयोग लगभग दो गुना हो जाएगा तथा मनुष्य को उन सुविधाओं को भी कृत्रिम रूप से तैयार करना पड़ेगा जो अब तक प्रकृति से मुफ्त उपलब्ध है।
विश्व स्तर पर जनसंख्या वृद्धि पर चिन्तन करते हुए National Academy of Sciences, U.S.A., 1989 ने अपने ब्रोशर कॉमन फ्यूचर ग्लोबल चेन्ज एण्ड कॉमन बुलर (Global Change and our Common Bular) में लिखा है कि, "जनसंख्या वृद्धि संभवतः एक मुख्य, एकमात्र कारण है जिससे पर्यावरणीय संकट में वृद्धि होती है जिसमें संसाधन और शक्ति का ह्रास तथा ठोस, द्रव, गैस और तापीय अपशिष्ट की अत्यधिक वृद्धि सम्मिलित है।" जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव के सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आयोजित मानव पर्यावरण पर अन्तर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस (1972) में स्व. श्रीमती इन्दिरा गांधी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा था- " अधिक जनसंख्या गरीबी को बुलावा देती है और गरीबी प्रदूषण को जन्म देती है।'
जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। जल, मृदा, वायु, ध्वनि प्रदूषण की समस्या का मुख्य कारण जनाधिक्य ही है। जनसंख्या वृद्धि और नगरों की ओर पलायन के कारण झुग्गी-झोपड़ियों की संख्या बढ़ रही है। यातायात के साधनों की वृद्धि के फलस्वरूप वायु और ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा है। निरन्तर बढ़ती हुई आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उत्पादन बढ़ाने, कीटनाशकों और विषैले रासायनिकों के प्रयोग, आवासीय सुविधा उपलब्ध कराने, कल-कारखानों की स्थापना के लिए कृषि योग्य भूमि और वनों का विनाश किया जा रहा है। प्रति वर्ष वनस्पति और जीव जगत की अनेक प्रजातियों का लोप होता जा रहा है। इस प्रकार तात्कालिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए जा रहे प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से अनेकानेक दीर्घकालिक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।
जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
(1) वनों के विनाश की समस्या - बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के मानव द्वारा वनों को तेजी से काटकर कृषि योग्य भूमि बढ़ाई जा रही है। ग्रामीण जनता के भोजन पकाने के लिए मकानों के निर्माण के लिए लकड़ी प्राप्त के लिए वनों को तेजी से काटा जा रहा है जिससे हमारे देश की भूमि का प्रतिशत 23 प्रतिशत से गिरकर 12 प्रतिशत रह गया है। वनों के विनाश का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे बाढ़, भूमि का कटाव, वन सम्पदा की हानि जैसी अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। वनों को कटने जीव-जन्तुओं के अस्तित्व पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। वनों के बने रहने से वायु प्रदूषण कम होता है और सामान्य वर्षा होने से सहायता मिलती है।
(2) शुद्ध वायु की समस्या - वायु के बिना किसी भी जीव का जीवन सम्भव नहीं है। बढ़ती हुई जनसंख्या एवं औद्योगीकरण के कारण वायु में शुद्धता नहीं रही। आधुनिक युग में विभिन्न प्रकार के उद्योगों से धुएँ के रूप में अनेक विषाक्त गैसें निकलती हैं जो वायुमण्डल को प्रदूषित कर देती हैं। वायुमण्डल में लाभदायक गैसें जैसे- ऑक्सीजन आदि की कमी हो रही है। वायुमण्डल में ऑक्सीजन के कम होने तथा कार्बन डाईऑक्साइड के बढ़ने से पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो रही है। अगर कार्बन डाईऑक्साइड का वायुमण्डल में इसी प्रकार बढ़ना जारी रहा तो ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण पृथ्वी का तापक्रम 3.6 सेल्सियस बढ़ जाने की आशंका है जिससे जनजीवन के अस्त-व्यस्त हो जाने का खतरा है।
( 3 ) शुद्ध जल की समस्या - प्राकृतिक संसाधनों में जल एक महत्वपूर्ण घटक है जिसका उपयोग पृथ्वी एवं वायुमण्डल में उपस्थित सभी जीव करते हैं। विश्व धरातल के सम्पूर्ण क्षेत्रफल पर 70 प्रतिशत जल उपलब्ध है किन्तु आज अधिकांश मनुष्यों, जानवरों तथा पौधों को विशुद्ध जल दुर्लभ हो गया है। भारत में गंगा, यमुना, गोमती आदि सभी नदियों का जल प्रदूषित हो गया है। फलस्वरूप भारत लगभग 21.3 प्रतिशत जनसंख्या प्रदूषित जल पीने को बाध्य हो गयी है। प्रदूषित जल के सेवन से अनेकानेक रोग उत्पन्न होते हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत में प्रतिवर्ष 20 लाख व्यक्ति दूषित जल पीने के कारण मर जाते हैं।
(4) मृदा प्रदूषण एवं मृदा अपरदन - बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्यान्नों की मांग की पूर्ति हेतु कृषि उपज बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के उर्वरकों का प्रयोग बहुतायत में किया जा रहा है। उर्वरक की अधिकता से खेतों की मृदा का प्रदूषण हो रहा है तथा भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो रही है। जनसंख्या विस्फोट ने मृदा संसाधनों को बुरी तरह प्रभावित किया है। ईंधन और चारे की बढ़ती मांग, पेड़-पौधे तथा वनों की अंधाधुंध कटाई से मृदा अपरदन में वृद्धि हुई है। मृदा की गुणवत्ता में ह्रास हुआ है। इसके अतिरिक्त अधिक संख्या में आवश्यक भवनों के निर्माण हेतु आवश्यक मिट्टी के लिए अत्यधिक मृदा का जमाव बढ़ता जाता है जिससे इसकी जल धारण क्षमता कम होती जाती है।
( 5 ) ध्वनि प्रदूषण - जनसंख्या वृद्धि के फलस्वरूप अधिक कल, कारखानों का विकास, परिवहन के साधनों, वायुयान, मोटर, रेलगाड़ी, स्कूटर, कारों आदि के आधिक्य एवं लाउडस्पीकरों के अधिक प्रयोग के कारण ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न होता है। तीव्र ध्वनि के कारण नींद न आना, बहरापन, उच्च रक्तचाप, चिड़चिड़ापन जैसी बीमारियों के साथ सोचने-समझने की क्षमता का ह्रास एवं स्मरण शक्ति में कमी हो जाती है।
( 6 ) अम्ल वर्षा - जनसंख्या वृद्धि एवं औद्योगीकरण के कारण विभिन्न प्रकार के उद्योग, यातायात के साधन, ऊष्मीय विद्युत गृह में विभिन्न प्रकार के ईंधन का दहन होता है जिससे विभिन्न प्रकार की गैसें जैसे- सल्फर डाईऑक्साइड, कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रिक ऑक्साइड आदि उत्सर्जित होती हैं। वायुमण्डल में मिल जाती हैं। जब ये गैसें वायुमंण्डल जलवाष्प से सम्पर्क में आती हैं तो अम्ल में बदल जाती हैं जिससे वर्षा का पानी अम्लीय हो जाता है। अम्लीय वर्षा पेड़- पौधों, मिट्टी एवं वनों के विकास के लिए घातक है। अम्लीय वर्षा प्राणि मात्र के लिए अत्यधिक हानिकारक होती है इससे दमा, खांसी, फेफड़े का रोग हो जाता है।
जनसंख्या का आर्थिक विकास पर प्रभाव
सामान्यतः आर्थिक विकास का मापन प्रति व्यक्ति आय द्वारा किया जाता है। इस सन्दर्भ में आर्थिक विकास पर जनसंख्या के प्रभाव की अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त द्वारा स्पष्ट किया जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार प्रारम्भ में जनसंख्या वृद्धि का आर्थिक विकास पर अच्छा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि जनसंख्या बढ़ने से प्राकृतिक साधनों के उचित विदोहन में सहायता मिलती है। परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है। यह वृद्धि कुछ अवधि तक चलती है। फिर एक बिन्दु ऐसा आता है जहाँ प्रति व्यक्ति आय अपनी उच्चतम सीमा पर पहुँच जाती है। यदि सीमा के पश्चात् जनसंख्या में वृद्धि होती है तो आर्थिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है और प्रति व्यक्ति आय गिरने लगती है।
सैद्धान्तिक रूप से उपर्युक्त विश्लेषण सही प्रतीत होता है लेकिन व्यवहार में अर्द्धविकसित देशों में जहाँ पहले से ही जनसंख्या का आधिक्य होता है यदि समुचित मानव शक्ति नियोजन क्रियान्वित न किया जाये, तो जनसंख्या की तीव्र दर से वृद्धि विकास में बाधक सिद्ध हो सकती है।
आर्थिक विकास पर सबसे अधिक प्रभाव जनसंख्या की इस विशेषता का पड़ता है कि आयु वितरण संरचना किस प्रकार की है अर्थात् किसी देश में कार्यकारी जनसंख्या का अनुपात जितना अधिक होगा, आर्थिक विकास पर उतना ही अच्छा प्रभाव पड़ेगा।
आर्थिक विकास का जनसंख्या पर प्रभाव - जनसंख्या पर आर्थिक विकास के प्रभाव को 'जनांकिकी संक्रान्ति सिद्धान्त द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है इस सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक देश की जनसंख्या को तीन अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है।
प्रथम अवस्था - प्रथम अवस्था में देश अल्प-विकसित अथवा अविकसित होता है। इस अवस्था में जहाँ एक ओर अशिक्षा, छोटी आयु में विवाह इत्यादि के कारण जन्मदर अधिक होती है वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के कारण मृत्युदर भी अधिक होती है। परिणामस्वरूप जनसंख्या - स्तर में कोई विशेष वृद्धि नहीं होती।
द्वितीय अवस्था - इस अवस्था में देश विकासशील अर्थव्यवस्था की स्थिति में होता है। इस अवस्था में लोगों का जीवन स्तर ऊंचा होने तथा स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि होने के कारण मृत्युदर कम होने लगती है, लेकिन धार्मिक और सामाजिक रीतिरिवाजों के कारण जन्मदर में विशेष कमी नहीं होती, अतः द्वितीय अवस्था में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ती है। इस अवस्था को 'जनसंख्या विस्फोट' की अवस्था भी कहा जाता है।
तृतीय अवस्था - तृतीय अवस्था में देश विकसित अर्थव्यवस्था की स्थिति में आ जाता है। इस अवस्था में शिक्षा का प्रसार होने, सीमित परिवार के महत्त्व को समझने तथा सामाजिक रीतियों में परिवर्तन आने के कारण जन्म-दर गिरने लगती है, और मृत्यु दर कम होने की प्रवृत्ति पहले से ही विद्यमान होती है। परिणामस्वरूप इस अवस्था में जनसंख्या में वृद्धि धीमी गति से होती है।
पर्यावरण का आर्थिक विकास पर प्रभाव - पर्यावरण और आर्थिक विकास का बहुत गहरा सम्बन्ध है। पर्यावरण की व्यवस्थित संरचना विकास का पर्याय माना जाता है। हमारे धर्मशास्त्रों में पर्यावरण को ईश्वरीय विधान माना गया है। जब पर्यावरण अच्छा होगा तब आर्थिक संवृद्धि दिन- प्रतिदिन बढ़ती जायेगी। पर्यावरण के आधार स्तम्भ पर ही विकास की नींव निर्भर है। भारतीय कृषि व्यवस्था पर्यावरण के अभाव में पनप ही नहीं सकती। पर्यावरणीय व्यवस्था पर उद्योगों की निर्भरता है। उत्तम प्रकार का पर्यावरण श्रेष्ठता का परिचायक है। प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता उद्योगों के विकास के लिए सहायक है। प्रदूषित पर्यावरण विपत्तियों का आह्वान है। भारत में समस्त प्रकार के खनिज अवयव पाये जाते हैं जिसकी निर्भरता पर्यावरण पर है।
भारत कृषि प्रधान देश है। कृषि व्यवस्था का मूलाधार वर्षा है। बिना पर्यावरण के वर्षा सम्भव नहीं है। अतः हम कह सकते हैं कि अर्थव्यवस्था तभी फलदायी होगी जब पर्यावरण श्रेष्ठ होगा।
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- प्रश्न- आर्थिक विकास का आशय तथा परिभाषा कीजिए। आर्थिक विकास की प्रकृति व महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास की परिभाषाएँ दीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास की विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास की प्रकृति बताइए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास एवं आर्थिक वृद्धि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले कारको की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- आर्थिक विकास को निर्धारित करने वाले आर्थिक तत्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास के अनार्थिक तत्वों को समझाइए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास पर मानवीय संसाधन के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास में बाधक हैं?
- प्रश्न- बढ़ती हुई जनसंख्या का आर्थिक विकास पर प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास के मापक बताइये।
- प्रश्न- आर्थिक विकास में संस्थाओं की भूमिका समझाइए।
- प्रश्न- किसी देश के आर्थिक विकास में विदेशी पूँजी की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक संवृद्धि की गैर-आर्थिक बाधाएँ कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- आर्थिक पिछड़ापन आर्थिक तथा अनार्थिक कारकों का परिणाम है। इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास एवं विकास अन्तराल की माप किस प्रकार की जाती है?
- प्रश्न- गरीबी अथवा निर्धनता के अर्थ को स्पष्ट कीजिए, भारत में गरीबी के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विकसित एवं विकासशील देशों की आय एवं सम्पत्ति असमानता में अन्तराल के कारणों का स्पष्ट विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास सूचकांक की धारणा किन मान्यताओं पर आधारित है, तथा मानव विकास सूचकांक निर्माण करने के चरणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गरीबी रेखा के निर्धारण का क्या महत्त्व है? तथा भारत में गरीबी रेखा के निर्धारण हेतु सरकार द्वारा उठाये गये कदमों पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- प्रसरण प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सापेक्ष गरीबी बनाम निरपेक्ष गरीबी पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मानव विकास सूचकांक (HDI) क्या है? यह मानव विकास में कितने आयामों को मानता है?
- प्रश्न- भौतिक जीवन कोटि निर्देशांक किसने निर्मित किया? भौतिक जीवन कोटि निर्देशांक किन सूचकों द्वारा की जाती है?
- प्रश्न- "कोई देश इसलिए गरीब रहता है क्योंकि वह गरीब है। " स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निर्धनता के दुष्चक्र को तोड़ने के उपाय बताइये।
- प्रश्न- गिनी गुणांक क्या है? गिनी गुणांक कैसे मापा जाता है?
- प्रश्न- गिनी गुणांक का महत्व क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- लॉरेंज वक्र क्या है?
- प्रश्न- वैश्विक भूख सूचकांक क्या है?
- प्रश्न- लिंग सम्बन्धित विकास सूचक क्या है?
- प्रश्न- मानव निर्धनता सूचक क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- खुशहाली सूचकांक क्या है?
- प्रश्न- सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य (MDG) की महत्वपूर्ण विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- सतत् विकास की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थर लुइस द्वारा प्रस्तुत असीमित श्रम आपूर्ति द्वारा आर्थिक विकास के सिद्धान्त का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- प्रबल प्रयास सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नैल्सन का निम्नस्तरीय संतुलन अवरोध का सिद्धान्त की चित्रात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- संतुलित विकास के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए तथा विकासशील देशों के सन्दर्भ में इसकी सीमाएं बताइए।
- प्रश्न- संतुलित विकास के पक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- संतुलित विकास के विपक्ष में विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा दिये गये तर्कों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- असंतुलित विकास को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- असंतुलित विकास के सम्बन्ध में विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा परिलक्षित किये गये विचारों को प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- संतुलित तथा असंतुलित विकास पद्धति में कौन बेहतर है?
- प्रश्न- हर्षमैन के असन्तुलित विकास सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए तथा विकासशील देशों के लिए इसकी उपयुक्तता का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- संतुलित एवं असंतुलित विकास की व्याख्या कीजिए। भारत जैसे विकासशील देश के लिए किस प्रकार का विकास अपेक्षित है?
- प्रश्न- असंतुलित विकास सिद्धान्त को समझाइये |
- प्रश्न- सन्तुलित विकास के सम्बन्ध में रोजेन्स्टीन रोडान के विचार को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हर्षमैन द्वारा संतुलित विकास के विचार की किस प्रकार आलोचना की गयी है?
- प्रश्न- रोस्टोव की आर्थिक विकास की अवस्थाओं का वर्णन एवं आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- हैरोड तथा डोमर के विकास मॉडल की आलोचनात्मक व्याख्या करते हुए बताइए कि भारत जैसे अल्पविकसित देश में यह कहाँ तक लागू किया जा सकता है?
- प्रश्न- हैरोड द्वारा प्रस्तुत विकास दरों व समीकरण बताइए।
- प्रश्न- हैरोड के विकास मॉडल की आलोचनायें बताइए।
- प्रश्न- हैरोड का विकास मॉडल डोमर के विकास मॉडल से किस प्रकार भिन्न है?
- प्रश्न- हैरोड के विकास प्रारूप का संक्षेप में परीक्षण कीजिए। भारत जैसे विकासशील देशों में यह कहाँ तक लागू होता है?
- प्रश्न- हैरोड - डोमर मॉडल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- व्यष्टि स्तर पर नियोजन समझाइए।
- प्रश्न- हैरोड - डोमर मॉडल में छुरी-धार सन्तुलन की परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत के जनसंख्या वृद्धि की बदलती हुई विशेषताओं पर एक नोट लिखिए।
- प्रश्न- जनांकिकी से क्या अभिप्राय है? जनांकिकी संक्रमण सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जनसंख्या एवं पर्यावरण किस प्रकार एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं तथा आर्थिक विकास को कैसे प्रभावित करते हैं? मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- "जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास में सहायक है अथवा बाधक।" इस कथन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जनसंख्या का आर्थिक विकास पर तथा आर्थिक विकास का जनसंख्या पर पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- पर्यावरण क्या है? इसके कार्यों को स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- जनसंख्या नीति 2000 की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- समावेशी विकास की आवधारणा या महत्व क्या है?
- प्रश्न- समावेशी विकास के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?
- प्रश्न- समावेशी विकास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बाजार विफलता का अर्थ स्पष्ट कीजिए एवं बाजार विफलता के कारण बताइये।
- प्रश्न- सरकार की विफलता के कारण बताइए।
- प्रश्न- बाजार विफलता को ठीक करने के उपाय बताइये।
- प्रश्न- सरकार की विफलता का अर्थ क्या है तथा इसके क्या कारण हैं?
- प्रश्न- सरकार की विफलता का अर्थ बताइए।
- प्रश्न- मानव पूँजी क्या है? आर्थिक विकास में मानवीय पूँजी निर्माण की भूमिका एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "जनसंख्या राष्ट्र के लिये सम्पत्ति है और दायित्व भी।" इस कथन पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- मानवीय पूँजी निर्माण का क्या अर्थ है तथा मानवीय संसाधनों के विकास में क्या महत्व है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मानवीय पूँजी निर्माण की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मानवीय साधनों में विनियोग कितने मदों में किया जाता है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मानव पूँजी निर्माण के उपायों पर चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- मानव पूँजी निर्माण के घटकों तथा अर्धविकसित देशों में मानव पूँजी के निम्न स्तर होने के कारणों का स्पष्ट विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- मानवीय पूँजी निर्माण के क्या-क्या मापदण्ड हैं? तथा इसके मापदण्डों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास से आपका क्या तात्पर्य है? किसी विकासशील (अल्पविकसित ) देश की क्या विशेषताएँ हैं?
- प्रश्न- भारत जैसे एक अल्पविकसित देश के प्रमुख लक्षणों पर प्रकाश डालिए। भारत के अल्पविकसित होने के प्रमुख कारणों को बताइए।
- प्रश्न- विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्था के मध्य अन्तर स्पष्ट करते हुए आर्थिक विकास के सूचकांकों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अल्पविकास के प्रमुख मापदण्ड़ों को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- अल्पविकास के कारणों को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्था में अन्तर स्पष्ट करें।
- प्रश्न- क्या भारत एक अल्पविकसित देश है? स्पष्ट कीजिये।
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